Armadag Sarhul Sarna Puja | अरमादग सरहुल सरना पूजा! | Sarhul Festival Armadag

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झारखंड अरमादग में सरहुल पूजा: एक सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व है। जय धर्मे!! जय चाला!!

Sarhul Sarna Puja

ग्राम अरमादग पंचायत संकी पोस्ट पाली थाना पतरातू जिला रामगढ़  रांची झारखंड में है।

This time preparations are being made to celebrate Armadag Sarhul Sarna Puja with great pomp and show. Now it remains to be seen how Armadag Sarhul Sarna Puja is celebrated. If this happens then Armadag Basti will get a new name.


हमारे Armadag गाँव के मुखिया कोमिला देवी"

अरमादग सरहुल सरना पूजा इस बार बड़ा ही धूम धाम से मनाने का परक्रिया किया जा रहा है, आब देखना यह है की अरमादग सरहुल सरना पूजा किस तरह से मानते हैं, अगर ऐसा हुवा तो Armadag Basti को एक नया नाम मिलेगा, 


परिचय सरहुल पूजा की :

मैं उमा देवी आप से निवेदान है की इस लेख को अंतिम लेख तक पढ़े, मैं आप से यह बिनती करती हूं, की इस लेख को आगे से आगे आप अपने लोगों के साथ साझा करें और अपने  सरहुल पूजा यानि सरना धर्म को उजागर करें। एक आदिवासी होने का फार्ज पूरा करें।


सरहुल, झारखंड के आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है, जो प्रकृति और विशेष रूप से साल (सखुआ) वृक्ष की पूजा से संबंधित है। यह पर्व वसंत ऋतु की शुरुआत और नए साल के आगमन का प्रतीक है, जिसे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

सरहुल पूजा की तिथि


2025 में, (सोमवार को रूसा) सरहुल पूजा 1 अप्रैल, मंगलवार को मनाई जाएगी। (बुध को फूल खोसी) यह पर्व हिंदू कैलेंडर के चैत्र माह की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में पड़ता है।


सरहुल का महत्व

'सरहुल' शब्द दो भागों से मिलकर बना है: 'सर' (वर्ष) और 'हुल' (शुरुआत)। यह पर्व नए साल की शुरुआत और प्रकृति की पूजा का प्रतीक है। आदिवासी समुदाय इस दिन को विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं, क्योंकि यह कृषि और पर्यावरण से गहरे जुड़े होते हैं।

पूजा की सामग्री


सरहुल पूजा में मुख्य रूप से ( सखुवा पेड़ ) साल वृक्ष के फूल, महुआ के फल, विभिन्न प्रकार के फल, पत्ते, बीज, चावल, और मुर्गे की बलि दी जाती है। इन सामग्रियों का उपयोग प्रकृति और देवताओं की पूजा में किया जाता है।

पूजा की प्रक्रिया

पर्व के दिन,( गांव Armadag ) के पुजारी (पाहान ) (गोडायत)  और (फुल सुसारी) उनके सहायक (देउरी) सरना स्थल पर एकत्रित होते हैं। यहां, साल के फूलों, महुआ के फलों, और अन्य प्राकृतिक वस्तुओं से देवताओं की पूजा की जाती है। पूजा के बाद, मुर्गे की बलि दी जाती है, और उसके सिर पर चावल के दाने डाले जाते हैं। यदि मुर्गा चावल खाता है, तो यह समृद्धि और अच्छे मानसून का संकेत माना जाता है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम 


पूजा के बाद, गांववाले पारंपरिक नृत्य और गीतों के माध्यम से अपनी खुशी का इज़हार करते हैं। यह सामूहिक उत्सव समुदाय की एकता और भाईचारे को दर्शाता है। लोग रंग-बिरंगे परिधानों में सजते हैं और पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन पर नृत्य करते हैं।

FAQs

1. सरहुल पूजा क्यों मनाई जाती है?


सरहुल पूजा वसंत ऋतु की शुरुआत, नए साल के आगमन, और प्रकृति विशेषकर साल वृक्ष की पूजा का प्रतीक है। यह आदिवासी समुदायों के लिए कृषि और पर्यावरण से जुड़ा महत्वपूर्ण पर्व है।

2. सरहुल पूजा में कौन-कौन सी सामग्री की पूजा की जाती है?

पूजा में मुख्य रूप से साल के फूल, महुआ के फल, विभिन्न प्रकार के फल, पत्ते, बीज, चावल, और मुर्गे की बलि दी जाती है।

3. सरहुल पूजा की तिथि कब है?

2025 में, सरहुल पूजा 1 अप्रैल, मंगलवार को मनाई जाएगी।

4. सरहुल पूजा के दौरान कौन से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं?

पूजा के दौरान पारंपरिक नृत्य, गीत, और सामूहिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जो समुदाय की एकता और खुशी को दर्शाते हैं।

5. सरहुल पूजा में मुर्गे की बलि क्यों दी जाती है?

मुर्गे की बलि से संबंधित अनुष्ठान में, मुर्गे के सिर पर चावल के दाने डाले जाते हैं। यदि मुर्गा चावल खाता है, तो इसे समृद्धि और अच्छे मानसून का संकेत माना जाता है।

सरहुल पूजा झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और प्रकृति के प्रति आदिवासी समुदाय की श्रद्धा का प्रतीक है, जो राज्य की विविधता और एकता को प्रदर्शित करता है।

इस लेख को उमा देवी के जरिए उल्लेख किया गया है। जोकि ग्राम अरमादग का ही रहने वाली हैं। इस जानकारी को www.rojaanajankari.com ने" इस लेख रोशनी दिखाने का काम किया है।

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8 टिप्पणियाँ

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  1. ऐसा ही जानकारी इस वेबसाइट पर आप पब्लिश करते रहें।

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  2. आपने बहुत अच्छा जानकारी लोगों को दिया है। मैं इस लेख से सहमत हूं।

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